आसनों की प्रकिया में आने वाले कुछ शब्दों की समझ
- रेचक का अर्थ है श्वास छोड़ना।
- पूरक का अर्थ है श्वास भीतर लेना।
- कुम्भक का अर्थ है श्वास को भीतर या बाहर रोक देना।
- श्वास लेकर भीतर रोकने की प्रक्रिया को आन्तर या आभ्यान्तर कुम्भक कहते हैं।
- श्वास को बाहर निकालकर फिर वापस न लेकर श्वास बाहर ही रोक देने की क्रिया को बहिर्कुम्भक कहते हैं।
- चक्रः चक्र, आध्यात्मिक शक्तियों के केन्द्र हैं। स्थूल शरीर में चर्मचक्षु से वे दिखते नहीं, क्योंकि वे हमारे सूक्ष्म शरीर में स्थित होते हैं। फिर भी स्थूल शरीर के ज्ञानतन्तु,
स्नायु केन्द्र के साथ उनकी समानता जोड़कर उनका निर्देश किया जाता है। हमारे शरीर में ऐसे सात चक्र मुख्य हैं।
- मूलाधारः गुदा के पास मेरूदण्ड के आखिरी मनके के पास होता है।
- स्वाधिष्ठानः जननेन्द्रिय से ऊपर और नाभि से नीचे के भाग में होता है।
- मणिपुरः नाभिकेन्द्र में होता है।
- अनाहतः हृदय में होता है।
- विशुद्धः कण्ठ में होता है।
- आज्ञाचक्रः दो भौहों के बीच में होता है।
- सहस्रारः मस्तिष्क के ऊपर के भाग में जहाँ चोटी रखी जाती है, वहाँ होता है।
नाड़ीः प्राण वहन करने वाली बारीक नलिकाओं को नाड़ी कहते हैं। उनकी संख्या 72000 बतायी जाती है। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना ये तीन मुख्य हैं। उनमें भी सुषुम्ना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।